दोस्तों आज के इया टॉपिक में हम बात करेंगे की ऐसी पाँच आदते जिनसे हम इमोशनली स्ट्रोंग हो सकते हैं अगर आप इन आदतों को फॉलो करना शुरू कर दे तो
हमारे इस टॉपिक 5 Habits of emotionally strong people in hindi में आपको ऐसे मुख्य पांच बिंदु के बारे में जानकारी मिलेगी जो की बढे सफल लोगो के द्वारा अपनी लाइफ में अमल की गयी है
जब भी आप किसी से फेमस साइंटिस्ट्स जैसे अल्बर्ट आइंस्टाइन, न्यूटन या निकोलस टेस्ला के बारे में पूछें कि ये लोग बाकी सिद्दत से इतने सक्सेसफुल क्यों थे तो ज्यादातर लोगों का जवाब होगा क्योंकि वो बहुत सुंदर इंटेलीजेंट थे लेकिन एक रिसर्च के अकॉर्डिंग हमारा आईक्यू वैज्ञानिक इंटेलिजेंस कोशेंट हमारी सक्सेस में सिर्फ 20% मैटर करता है और बाकी का 80% इस बात पर डिपेंड करता है कि हम अपने इमोशंस को कितनी अच्छी तरह से हैंडल कर पाते हैं।
डेनियल कोलमैन का कहना है कि हमारा आईक्यू फिक्स्ड होता है जो हमें हमारे जन्म से ही मिलता है और जो जिंदगी भर समान ही रहता है तो हम सब अपने आईक्यू को तो बहुत आसानी से चेंज नहीं कर सकते हैं लेकिन हां हम अपनी आईक्यू बढ़ा सकते हैं। इमोशनल इंटेलिजेंस के बारे में सीखे जिसे आप अपने इमोशंस पर कंट्रोल करना सीख सकते हैं और जो कि आपकी लाइफ की सक्सेस में 80% अफेक्ट करता है |
तो पहले ये समझते हैं कि इमोशंस असल में होते क्या हैं? इमोशंस एक तरह के स्ट्रॉन्ग एनर्जी होते हैं जो हमें इमीडिएट ऐक्शन लेने पर मजबूर कर दिया और हम अपनी डेली लाइफ में पर्सेंट ऐक्शन अपने इमोशंस के अनुसार ही लेते हैं। इसीलिए अपने इमोशंस का इस्तेमाल करके सही निर्णय लेना हमारे लिए बहुत जरूरी है जो हम आज की विडियो में डेनियल कोलमैन द्वारा लिखी गई बुक इमोशनल इंटेलिजेंस की मदद से सीखेंगे।
5 Habits of emotionally strong people in hindi :
1.Self Awareness:
सेल्फ अवेयरनेस में हमें खुद को अच्छे से जानना है। अपनी emotion और अपने व्यवहार को जाँच करना ये हमें इमोशनल इंटेलिजेंस डेवलप करने की तरफ सबसे पहला और मुख्य स्टेप है। हम किस तरह सोचते हैं अपने strength और weakness के साथ कैसे डील करते हैं और इससे हमारे आस पास के लोगों पर क्या असर पड़ता है। हमें इन सभी बातों से अवेयर रहना चाहिए। हमारे इमोशन ज्यादा टाइम तक सेफ नहीं रहे।
जैसे आपने भी नोटिस किया होगा। अगर आप किसी वजह से खुश हैं तो आपका वो मूड हमेशा सेफ नहीं रहेगा। ऐसे ही अगर आप दुखी हैं तो वो इमोशन भी कुछ टाइम में चेंज हो जाएगा। इसीलिए अपने मोशन को कंट्रोल करने से पहले हमें उन्हें अच्छे से observe करना होगा कि हम कब कैसा फील कर रहे हैं। अगर हमें गुस्सा आ रहा है तो उसे कंट्रोल करने के लिए हमें सबसे पहले हमें यह एक्सेप्ट करना होगा कि मैं अभी गुस्से में हूं जिसे मुझे कंट्रोल करना है। इसे कहते हैं अपने इमोशन को लेकर सेल्फ अवेयर हो जाना और लोग अलग अलग तरह से अपने emotion से डील करते हैं जैसे कि “गुस्सा” ये वो लोग होते हैं जिनका मूड हर इमोशन के साथ चेंज होता रहता है और वो अपने खुद के ऐक्शन की वजह से प्रॉब्लम में आ जाते हैं और फिर असहाय फील करने लगते हैं। ये लोग अपने खुद के माइंडसेट को पहचान नहीं पाते। अपनी फीलिंग से अवेयर नहीं रह पाते कि कब किस बात में कैसे रिएक्ट करना चाहिए। एक तरह से कह सकते हैं कि अपनी फीलिंग्स में कन्फ्यूज रहते हैं |
2.Acceptance :
कुछ लोग अपनी फीलिंग्स और इमोशन से अवेयर हो जाते हैं और समझते हैं कि वो कैसा फील कर रहे हैं तो वो उस फीलिंग को एक्सेप्ट कर लेते हैं लेकिन अब चाहे वो उनके लिए कितना भी नुकसानदेय हो वो से आगे चलके फिर इग्नोर करते हैं और कभी चेंज करने की कोशिश नहीं करते। self aware ये लोग अपने इमोशंस और फीलिंग से फुली अवेयर होते हैं|
इन्हें पता होता है कि इन्हें कब गुस्सा आ रहा है। ये कब दुखी महसूस कर रहे हैं और ये उसे चेंज करने का try भी करते हैं। मैनेजिंग इमोशंस हर फीलिंग की अपनी एक इम्पॉर्टेंस और वैल्यू होती है। अपने इमोशंस को मैनेज करने के लिए सबसे इम्पॉर्टेंट है कि आपको पता होना चाहिए कि किस वजह से आपकी emotion चेंज हो रही है। क्या रीजन से जिनकी वजह से आपका माइंड डिस्टर्ब हो जाता है सब रीजंस को अच्छे से समझने की जरूरत है। फिर उन इमोशंस को कंट्रोल करने के लिए हम पहले से खुद को तैयार कर सकते हैं। आपका goal अपने इमोशंस को बैलेंस करना है ना कि उन्हें avoid करना।
अगर आप दुखी फील कर रहे हैं आपको कोई काम करने का मन नहीं है तो इसका मतलब ये नहीं कि आप इन्तेजार करें कि जब आप वापस से हैप्पी फील कर रहे होंगे तब काम करेंगे बल्कि आप अपने emotion के साथ कंफर्टेबल होकर वो काम करो जो आपके लिए कहना सही है। जब हमारे दिमाग में किसी चीज का डर आता है तो उस वक्त सब कुछ इग्नोर करके कैसे भी उस से निकलने की कोशिश करने लगते हैं। परेशान होना किसी भी सिचुएशन को डील करने के पहचान है लेकिन परेशान हो गए काम में प्रॉब्लम आने से पहले सिर्फ उसके सॉल्यूशन के बारे में सोचना है। लेकिन जब बार बार आप किसी चीज के लिए परेशान रहते हो और उसका कोई सलूशन नहीं निकलता तो फिर उससे डील करना आपके लिए और भी मुश्किल हो जाता है।
जब आप किसी चीज को लेकर परेशान रहते हो तो सिचुएशन को कंट्रोल करना आपके हाथ में नहीं होता और उससे आपको एंग्जाइटी डिसॉर्डर, स्ट्रेस और ओवर थिंकिंग, पैनिक अटैक्स आने लगते हैं जो आपकी मेंटल हैल्थ को सीधे इफेक्ट करता है। अगर आप अपने इमोशंस को मैनेज नहीं कर पा रहे तो आप बार बार एक चीज के लिए चिंतित रहोगे और यह worry to worry की साइकिल चलती रहेगी।
इसलिए अपने इमोशंस को मैनेज करने का सबसे बेस्ट वह उन्हें avoid ना करते हुए अपने emotion के साथ कम्फर्टेबल हो जाओ और कोई भी डिसीजन लेने से पहले खुद से ये पूछो कि क्या वो सच में आपके लिए सही है या आप अपने इमोशंस के बेसिस पर डिसिजन ले रहे हो।

3.Motivate Oneself:
जब कोई हमसे अपने दुख या अपनी कोई प्रॉब्लम हमारे साथ शेयर करता है तो हमें उसकी बातों को ठीक से सुनकर उसको समझाना चाहिए या बेस्ट सलाह देनी चाहिए और उसको मोटिवेट करना चाहिए। मतलब कि हमें उस इंसान की सिचुएशन उस मोमेंट पे उसके नजरिये से देखनी चाहिए।
Delay Gratification: एक रिसर्च में ये पता चला कि जो बच्चे सिर्फ 4 साल की उम्र में अपनी टेंशन को कंट्रोल करना सीख जाते हैं फिर वही लोग बड़े होकर सेल्फ डिपेंडेंट सोशली और पर्सनली एक्टिव हो जाते हैं। ये लोग अपनी लाइफ के प्रॉब्लम्स को अच्छे से एनालाइज कर पाते हैं। यही लोग इमोशनली स्ट्रॉन्ग होने की वजह से फिर अपनी लाइफ के चैलेंजेस को एक्सेप्ट करते हैं और स्ट्रैस या मेंटल प्रेशर में जाने से बच जाते हैं।
Maintain Hope And Optimism: “Hope” आपकी लाइफ में आगे बढ़ने के लिए सबसे इम्पॉर्टेंट चीज है। अगर आपके अंदर hope है तो आपकी डार्क एंड डल लाइफ भी ब्राइट हो सकती है लेकिन उसके लिए जरूरी है कि आपको खुद पर बिलीव होना चाहिए तब ही आप अपने गोल को अचीव कर सकते हैं। आपने भी नोटिस किया होगा कि कुछ लोग हर सिचुएशन में भी hopefull रहते हैं और यही रीजन है कि वो लोग किसी भी प्रॉब्लम का सॉल्यूशन निकाल लेते हैं। वहीं दूसरी तरफ हम देखते हैं कि कुछ लोगों में अपने गोल को अचीव करने के एबिलिटी और चैलेंजेस को फेस करने की एनर्जी नहीं होती क्योंकि उन्हें खुद पर ये बिलीव नहीं होता कि वो एक्चुअल में अपने गोल को अचीव कर सकते हैं।
4. Recognising emotions in others:
जितना ज्यादा हम लोग अपने मोशन के बारे में अवेयर होंगे उतने ही अच्छे से हम अपनी और दूसरों की फीलिंग्स को समझ सकते हैं। हम देखते हैं कि बहुत कम लोग अपने emotion को words में explain कर सकते हैं तो वो लोग अपने gestures, body language, facial expression को एक्सप्रेस करते हैं। किसी इनसान के emotion को समझने के लिए ये जरूरी है कि हम फोकस करें कि कैसे वो अपनी बात को एक्सप्लेन करता है ना कि उस पर कि वह क्या explain कर रहा है क्योंकि किसी भी इनसान के नॉन वर्बल एक्शन के द्वारा ही हम उसके इमोशंस को पहचान सकते हैं। दूसरों के इमोशंस को समझने के लिए ये जरूरी है कि हम पहले उनके बातों को ठीक से सुनें ना कि सुने बिना ही सलूशन बताने लग जाएं। दूसरों के जगह खुद को रखकर उनके पर्सपेक्टिव से उनकी सिचुएशन को देखें। उनके नॉन वर्बल एक्शन पर फोकस करें जो वो अपने वर्ड्स में एक्सप्लेन नहीं कर पा रहे।
5. Handling relationships:
किसी भी रिलेशनशिप को मेनटेन रखने के लिए जरूरी है कि आप दूसरे इंसान के emotion को समझने के साथ साथ दो और इमोशनल स्किल्स सेल्फ मैनेजमेंट और empathy पर भी फोकस करें। इन सब सोशल की वजह से आप और लोगों के साथ भी होने वाले इमोशनल एनकाउंटर को डील कर सकते हैं और लोगों को इंस्पायर भी कर सकते हैं। जब कोई आपसे अपने इमोशंस के बारे में कुछ डिस्कस करता है तो आप उसकी सिचुएशन को उसके पर्सपेक्टिव से भी देखिये और empathy शो कीजिए कि फिर वो भी अपने इमोशंस को easily हैंडल कर सकें। जितने ज्यादा हम सोशली लोगों से इंटरैक्ट करते हैं उतने ही अच्छे से हमारे इमोशनल signals लोगों तक पहुंचते हैं।
इमोशनल इंटेलिजेंस पर डिपेंड करता है कि हम कैसे अपने emotion लोगों के साथ मैनेज कर रहे हैं। हम किन लोगों के साथ अच्छा फील करते हैं और किन लोगों के साथ हमारा मूड डिस्टर्ब हो जाता है इन सब चीजों के अकॉर्डिंग ही हम अपने इमोशंस को कंट्रोल कर सकते हैं। जो लोग अपने आसपास के लोगों को समझ के उन्हें easy या शांत फील करवाते हैं उनके emotion को समझने की कोशिश करते हैं वो सोशली काफी एक्टिव होते हैं। हमें अपनी इमोशनल need के टाइम ऐसे लोगों की जरूरत होती है जो हमारी सिचुएशन को समझे और उन लोगों के suggestion, understanding हमारी इमोशनल कंडिशन को बेकार से बेहतर बना सकती हैं।
Final words :
तो दोस्तों आपको इस टॉपिक को पढकर काफी चीजे समझ आ गयी होंगी जिन्हें आप अपनी लाइफ में फॉलो कर सकते हैं और अपनी लाइफ चेंज कर सकते हैं |
अगर आपको इस बातों का असर हुआ है तो आप कमेंट करके बता सकते हैं |
FAQs..
इमोशनली स्ट्रोंग होना कितना जरुरी है?
इमोशनली स्ट्रोंग होना बहुत जरुरी है क्योकि अगर कोई इमोशनली स्ट्रोंग नहीं है तो वो इंसान अंदर से टूट जाता है और यूज़ उभरने में बहुत टाइम लगता है |
इसीलिए अच्छी आदते फॉलो करो और हमेशा मोटीवेट रहो |
इमोशनली स्ट्रोंग होने के फायदे क्या क्या हैं?
इमोशनली स्ट्रोंग होने के कई फायदे हैं जिनसे आप हमेशा खुश रहोगे |
आप हमेशा पॉजिटिव रहते है और motivated रहते हैं |
इमोशनली स्ट्रोंग लोग हमेशा खुश रहते है और दूसरो में खुशिया ढूढ़ते हैं |
जो लोग इमोशनली स्ट्रोंग होते हैं वो खुद को किसी भी दुःख में संभाल लेते हैं